Reach for the Top Summary || Part-1 || In Hindi

सन्तोष का जन्म और पारिवारिक पृष्ठभूमि
सन्तोष यादव ने माउन्ट ऐवरेस्ट पर दो बार विजय प्राप्त की है। ऐसा करने वाली वह संसार में अकेली महिला है। वह उस समाज में जन्मी जिसमें पुत्र का जन्म वरदान माना जाता था। लड़की का स्वागत नहीं होता था। एक ‘साधु’ ने सन्तोष की माँ को यह सोचकर आशीर्वाद दिया कि वह लड़का चाहती थी। परन्तु सन्तोष की दादी ने उसे कहा कि वे लड़का नहीं चाहते। इसने साधु को आश्चर्यचकित कर दिया। उसने उसे आशीर्वाद दिया। सन्तोष हरियाणा के जोनियावास गाँव में छठी सन्तान के रूप में उत्पन्न हुई। वह पाँच भाइयों की एक बहन है।

गैर-पारम्परिक सन्तोष
उसका नाम ‘सन्तोष’ रखा गया जिसका अर्थ है सन्तुष्टि। सन्तोष ने अपने अनुसार ही जीवन जीना आरम्भ किया। दूसरी लड़कियां भारतीय परम्परावादी कपड़े पहनती थीं। परन्तु वह छोटे कपड़े पहनती थी। उसने कहा कि वह एक सही रास्ता चुनने के लिए निश्चयी थी। दूसरों को स्वयं को बदलना था न कि उसे।

शिक्षा के लिए सन्तोष की महान इच्छा
सन्तोष के माता-पिता अमीर जमींदार थे। वे उसे शिक्षा के लिए समीप राजधानी दिल्ली भेज सकते थे। परंतु उन्होंने उसे गाँव के स्कूल में भेजा। सन्तोष ने सिस्टम से लड़ने का निर्णय लिया। जब वह 16 वर्ष की हुई तो उसने शादी करने से मना कर दिया। उसके गाँव में अधिकतर लड़कियाँ उस आयु पर शादी कर लेती थीं। उसने अपने माता-पिता को चेतावनी दी कि यदि उसे सही शिक्षा नहीं मिलेगी तो वह कभी शादी नहीं करेगी।

दिल्ली के एक स्कूल में सन्तोष
इसीलिये उसने दिल्ली में एक स्कूल में दाखिला ले लिया। उसके माता-पिता ने उसकी फीस देने से इन्कार कर दिया। परन्तु उसने उन्हें बताया कि वह पैसा कमाने के लिए पार्ट-टाईम नौकरी करेगी। वे उसकी शिक्षा के लिए पैसे देने के लिए रजामन्द हो गये।

जयपुर में कॉलेज में जाना
सन्तोष ने हाई स्कूल पास कर लिया। वह महारानी कॉलेज में दाखिले के लिए जयपुर गई। उसने कस्तुरबा होस्टल में एक कमरा लिया। यह अरावली पहाड़ियों के सामने था। वह पहाड़ी पर चढ़ते और अदृश्य होते गाँव वालों को देखती थी।

पहाड़ों की चढ़ाई के प्रति प्यार
एक दिन उसने इसे स्वयं चैक करने का निर्णय लिया कि क्यों पर्वतारोही अदृश्य हो जाते हैं। वह वहाँ गई। उसे कुछ चढ़ने वालों को छोड़ कर कोई नहीं मिला। उन्होंने उसे चढ़ाई के लिए उत्साहित किया। फिर पीछे मुड़ने की बात ही नहीं थी।

माउन्टेनियरिंग इन्स्टीट्यूट में प्रवेश
सन्तोष ने पैसा बचाया। उसने उत्तरकाशी के नेहरू इन्स्टीट्यूट ऑफ माउन्टेनियरिंग में एक कोर्स में दाखिला लिया। वह वहां पर जयपुर से सीधी गई। वहाँ से उसने अपने पिता को एक पत्र लिखा। इसमें उसने उत्तरकाशी में दाखिला लेने की माफी माँगी।

एक शानदार पर्वतारोही
वहाँ पर सन्तोष हरेक वर्ष अभियान पर गई। उसके अन्दर ठण्ड और ऊँचाई के विरुद्ध उल्लेखनीय प्रतिरोधशक्ति उत्पन्न हो गई। उसमें लौह इच्छा, शारीरिक सहनशीलता और मानसिक कठोरता थी। उसकी मेहनत ने फल देने आरम्भ कर दिये।

माउन्ट एवरेस्ट पर चढ़ाई
1988 में उसने अरावली पर्वतारोहियों से पूछा कि क्या वह उनमें सम्मिलित हो जाये। 1992 उसकी शानदार सफलता का वर्ष बन गया। जब वह महज बीस वर्ष की थी तो उसने माउन्ट एवरेस्ट पर विजय पा ली। इस प्रकार वह इसे प्राप्त करने में संसार की सबसे कम उम्रवाली महिला बन गईं। वह समान रूप में साथी पर्वतारोहियों के लिए सहायक बन गई।

पर्वतारोही सन्तोष का दूसरा पहलू
1992 के एवरेस्ट मिशन के दौरान सन्तोष यादव ने एक पर्वतारोही की खास सहायता की। वह साउथ कोल में मरता हुआ पड़ा था। वह उसे नहीं बचा सकी। परन्तु वह दूसरे पर्वतारोही मोहन सिंह को बचाने में सफल हो गई। यदि सन्तोष उसके साथ अपनी आक्सीजन नहीं बाँटती तो वह मर जाता।

एवरेस्ट पर दूसरी बार विजय
बारह महीने में सन्तोष को इन्डो नैपालीज वीमेन्ज एक्सपिडिशन ने निमन्त्रित किया। वह इसकी सदस्य बन गई। तब उसने एवरेस्ट पर दोबारा विजय पा ली। उसने एवरेस्ट पर दो बार चढ़ने वाली अकेली महिला का रिकार्ड बना डाला।

सरकार द्वारा सम्मान
भारत सरकार ने उसकी उपलब्धि को पहचाना। उसका पदमश्री से सम्मान किया गया। यह राष्ट्र के उच्चतम सम्मानों में एक है।

चोटी पर न बताए जाने वाले पल
सन्तोष ने अपनी भावनाओं का वर्णन किया जब वह संसार की चोटी पर थी। उसने कहा कि उसे उस क्षण को समझने में कुछ समय लगा। उसने भारत का तिरंगा फहराया। वह उस क्षण का वर्णन नहीं कर सकती। उसने संसार की चोटी पर तिरंगा लहराते देखा। यह उसके लिए एक आध्यात्मिक क्षण था। उसने भारतीय होने के गर्व को अनुभव किया। सन्तोष ने पर्यावरण विशेषज्ञ के रूप में भी कार्य किया। वह हिमालय से 500 किलो कचरा लाई।


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